नवदुर्गा रहस्य – 4

नवदुर्गा रहस्य 1, नवदुर्गा रहस्य 2, नवदुर्गा रहस्य 3 by Basudeba Mishra ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्र्चराम्यहमादित्यैरुत विश्र्वदेवैः।अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्र्विनोभा ॥अहंसोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥ अव्ययपुरुष के रस भाग, जो दिग्-देश-काल से अपरिच्छिन्न है, सत्ता-चेतना-आनन्द (सच्चिदानन्द) रूपी सदा अपरिवर्त्तनीय धर्म से तथा बलभाग, जो दिग्-देश-काल से परिच्छिन्न है, नाम-रूप-क्रिया […]

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नवदुर्गा रहस्य – 3

by Basudeba Mishra नवदुर्गा रहस्य 1, नवदुर्गा रहस्य 2, नवदुर्गा रहस्य 4 शक्तिभेद के कारण आत्मा के तीन व्यूह होते हैँ । अव्यय पुरुष में रस के साथ बल का विभूति संसर्ग से ज्ञानार्थक मन, योग संसर्ग से क्रियात्मक प्राण तथा बन्ध संसर्ग से अर्थात्मक वाक् वनता है । सम्पूर्ण ज्ञान का आयतन स्थान मन

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नवदुर्गा रहस्य – 2

by Basudeba Mishra नवदुर्गा रहस्य 1, नवदुर्गा रहस्य 3, नवदुर्गा रहस्य 4 न तस्य कार्यं करणं च विद्यते न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते । परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ॥ श्वेताश्वेतर उपनिषत् ६-८ ॥ अक्षरात्सम्भवतीह विश्वम् ॥ मुण्डकोपनिषत् १-१-७ ॥ शुद्ध रूपसे रस (रसो वै सः – तैत्तिरीयोपनिषत् – २-७) और बल (नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो –

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नवदुर्गा रहस्य

by Basudeba Mishra नवदुर्गा रहस्य 2, नवदुर्गा रहस्य 3, नवदुर्गा रहस्य 4 किंज्योतिरयं पुरुष …. अस्तमिते आदित्ये याज्ञवल्क्य चन्द्रमस्यस्तमिते शान्तेऽग्नौ शान्तायां वाचि किंज्योतिरेवायं पुरुष इत्यात्मैवास्य ज्योतिर्भवतीत्यात्मनेवायं ज्योतिषाऽऽस्ते पल्ययते कर्म कुरुते विपल्येतीति । बृहदारण्यकोपनिषत् – ४-३-२ से ६ । जा॒तवे॑दसे सुनवाम॒ सोम॑मरातीय॒तो नि द॑हाति॒ वेद॑: । स न॑: पर्ष॒दति॑ दु॒र्गाणि॒ विश्वा॑ ना॒वेव॒ सिन्धुं॑ दुरि॒तात्य॒ग्निः ॥ दुर्गा सूक्तम्

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