ॐअथ मङ्गलाचरणम्गणनाथः जगन्नाथः लोकनाथः दीनबन्धुः । इमे हि मामयूयुजन् यथाश्रुतं वदेदिति । मातुरङ्के निषण्णेन यथा बालेन चन्द्रमाः । आहूयमानो नाभ्येति तद्वद् वेदार्थ ईप्सितः । उत्तरेतापनीये च शैव्ये प्रश्ने च काठके । माण्डुक्ये च यदोङ्कारः परापरः विभागतः । एतदालम्बनं श्रेष्ठमियदे श्रुतिमानतः । तदेवाखण्डैकरसः परमात्मेति चोच्यते । व्यतीतो भेदसंसर्गौ भावाभावौ क्रमाक्रमौ । सत्यानृते च विश्वात्मा प्रविवेकात् प्रकाशते […]
ENTANGLEMENT – THE VEDIC VIEW.
ENTANGLEMENT – THE VEDIC VIEW. Shri Basudeba Mishra Sharma Quantum entanglement is a grossly misunderstood physical phenomenon that is said to occur when pairs or groups of particles are generated, interact, or share spatial proximity, even when the particles are separated by a large distance, in ways such that the quantum state of each particle
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काव्यानुशीलन
काव्यानुशीलन। श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा सक्तुमिव तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत।अत्रा सखायः सख्यानि जानते भद्रैषां लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि। ऋग्वेदः १०-७१-२. बृहस्पतिराङ्गिरसः ऋषिः, ज्ञानम् देवता, त्रिष्टुप् छन्दः। “ऐसा हो जाय” – इस प्रकार के चित्तवृत्ति को इच्छा कहते हैं (भवत्विति चित्तवृत्तिरिच्छा) । इसका दो भेद है। “मेरा ऐसा हो” – इसप्रकार स्वीयत्वसापेक्ष इच्छा को स्वीया, तथा “उसका ऐसा
आधुनिक नव्यन्याय एक वैशेषिक विरोधी अज्ञान/चक्रान्त है ।
आधुनिक नव्यन्याय एक वैशेषिक विरोधी अज्ञान/चक्रान्त है । श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा एकमेव दर्शनम् । ख्यातिरेव दर्शनम् । पञ्चशिखाचार्य । भारतीय आस्तिक दर्शन एक ही है । वह समस्त वस्तुओं के सम्पूर्ण ख्याति (प्रसिद्धिः, ख्या॒ प्र॒कथ॑ने) अर्थात सम्पूर्ण ज्ञान है । किसी वस्तु अथवा विषय के विशेष ज्ञान विज्ञान है । अतः विज्ञान दर्शन के एक भाग
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KARMA (कर्म) VS ACTION.
KARMA (कर्म) VS ACTION -Shree Basudeba Mishra Sharma A scientist friend asked the meaning of: कर्म कर्मसाध्यं न विद्यते । वैशेषिक – १,१.११ । Literally it means, there is no proof to show that action gives rise to another action. But it appears contradictory to everyday observation. This was my reply. There is a vast
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प्रातः जगने से सोने तक के मन्त्र
भगवान मनु कहतें हैं धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा । अब प्रश्न उठता है कि हम धर्म की रक्षा कैसे करें तो इसका उत्तर है अपने नित्य कृत्यों को जब हम शास्त्रानुसार करेंगे तो तो अवश्य है धर्म की रक्षा होगी इसलिए शास्त्र कहतें है । आचारप्रभवो धर्मो नृणां श्रेयस्करो महान्।इहलोके परा
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