KARMA (कर्म) VS ACTION.

KARMA (कर्म) VS ACTION -Shree Basudeba Mishra Sharma A scientist friend asked the meaning of: कर्म कर्मसाध्यं न विद्यते । वैशेषिक – १,१.११ । Literally it means, there is no proof to show that action gives rise to another action. But it appears contradictory to everyday observation. This was my reply. There is a vast […]

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प्रातः जगने से सोने तक के मन्त्र

भगवान मनु कहतें हैं धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा । अब प्रश्न उठता है कि हम धर्म की रक्षा कैसे करें तो इसका उत्तर है अपने नित्य कृत्यों को जब हम शास्त्रानुसार करेंगे तो तो अवश्य है धर्म की रक्षा होगी इसलिए शास्त्र कहतें है । आचारप्रभवो धर्मो नृणां श्रेयस्करो महान्।इहलोके परा

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विप्रै: संवर्द्धितो विष्णुर्जपहोमार्चनादिभि:

पण्डित श्रीमद्गङ्गाधर पाठक ‘मैथिल’ चाकचिक्य वाले वर्णधर्मविहीन बड़े बड़े संस्थानों में वेद और वेदशास्त्रज्ञों का कोई महत्त्व नहीं। जिन वेदज्ञों को विशेष रूप से सम्मानित शुद्धासन मिलना चाहिए; उन्हें टेंट की दरी पर बैठने के लिए बाध्य होना सनातन परम्परा के लिए बहुत घातक है! पूज्यो! आप वेदरक्षकों का सम्मान नहीं करना चाहते; तो भी

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पुराण ।

पुराण । श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा  यो विद्याच्चतुरो वेदान्साङ्गोपनिषदान्द्विजाः ॥  इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् । बिभेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति ॥ ब्रह्माण्डपुराणम् पूर्वभागः १,१.१७०-१७१ ॥ जो संस्कारी व्यक्ति चारों वेद, वेदाङ्ग तथा उपनिषद के ज्ञाता हो उसीको वेद को विस्तार से जानने के लिए इतिहास (रामायण, महाभारत) तथा पुराण पढना चाहिए । नहीं तो अल्पशिक्षितों से वेद इसलिए दूर रहता

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हमारी संस्कृति के धरोहर ।

हमारी संस्कृति के धरोहर ।श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्मा अनन्तं शास्त्रं बहुवेदितव्यं स्वल्पश्चकालो बहवश्च विघ्नाः ।यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥ सनातन संस्कृति में शास्त्रों की सङ्ख्या अनन्त कहागया है । परन्तु हमारी आयु सीमित है । अतः जैसे हंस पानी में से दुध छान कर पी जाता है, हमें भी शास्त्रों का सार जान लेना चाहिए । हमारे

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