अवतार (Avataara)

वेद में अवतार ४ – नृसिंह अवतार (होलिका दहन)

Holika Dahana – burning of Holika, the demoness (होलिकादहन), is associated with Nrisimha Avatara (नृसिंह अवतार). The story is that the Demon King Hiranya Kashipu (हिरण्यकशिपु) had a son named Prahlada (प्रह्लाद), who was a devotee of Lord Vishnu. The father tried to dissuade him, but failed. Once he called Holika (होलिका), a relative, who […]

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वेद में अवतार ३ – कूर्म अवतार

शतपथब्राह्मणम् – 7-5-1-1 में कहा गया है – “कूर्ममुपदधाति । रसो वै कूर्मः । रसमेवैतदुपदधाति । यो वै स एषां लोकानामप्सु प्रविद्धानां पराङ्रसोऽत्यक्षरत् स एष कूर्मः । तमेवैतदुपदधाति । यावानु वै रसः तावानात्मा । स एष इम एव लोकाः ।“ विश्व में परिव्याप्त रसः (quark-gluon plasma) ही विश्व का मूल प्रतिष्ठा है (यावानु वै रसः

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वेद में अवतार २ – मत्स्य अवतार

नासदीयसूक्त (ऋग्वेद 10-129) के अनुसार सृष्टि से पूर्व सवकुछ अवात अर्थात् प्राणशून्य (अतः क्रियाशून्य) था । उस समय नार (न+अर) सर्वत्र व्याप्त था । निषेधात्मक अ अक्षर के साथ गत्यात्मक र अक्षर युक्त होनेसे अर शव्द का अर्थ गतिराहित्य है । न अक्षर के द्वारा उसका पुनः निषेध करने से नार शव्द का असामान्य अर्थ

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वेद में अवतार १

कुछ मित्रों का प्रश्न है कि क्या वेद में भी अवतार का वर्णन अथवा प्रतिषेध है । इस प्रसङ्गमें यजुर्वेद 34-53 (अजः एकपात्) तथा यजुर्वेद 40-8 (स पर्य्यगाच्छुक्रमकायम्) मन्त्रों का उद्धरण किया जाता है । अब हम इन दो उद्धरणों का अनुशीलन करेंगे । वेद पूर्ण एवं सर्वस्वतन्त्र होने से, उसमें इन समस्त अर्थों का

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कौन अवतार ग्रहण करते हैं ।

कर्म हि जगत् के प्रतिष्ठा का कारण है (न हि कश्चित्क्षणमपि जातु  तिष्ठत्यकर्मकृत् – गीता 3-5) । सततचलन रूपी कर्म के कारण इसे जगत् कहा जाता है (गच्छतीति जगत्) । अपेक्षाबुद्धि (इच्छित फल लाभ करने की आशा) से जो कर्म किया जाता है, उसमें प्रतियत्न रूपी संस्कार (inertia) का उदय होता है । उपेक्षाबुद्धि से

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