Essays of gurudeva

प्रातः जगने से सोने तक के मन्त्र

भगवान मनु कहतें हैं धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा । अब प्रश्न उठता है कि हम धर्म की रक्षा कैसे करें तो इसका उत्तर है अपने नित्य कृत्यों को जब हम शास्त्रानुसार करेंगे तो तो अवश्य है धर्म की रक्षा होगी इसलिए शास्त्र कहतें है । आचारप्रभवो धर्मो नृणां श्रेयस्करो महान्।इहलोके परा […]

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पुराण ।

पुराण । श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा  यो विद्याच्चतुरो वेदान्साङ्गोपनिषदान्द्विजाः ॥  इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् । बिभेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति ॥ ब्रह्माण्डपुराणम् पूर्वभागः १,१.१७०-१७१ ॥ जो संस्कारी व्यक्ति चारों वेद, वेदाङ्ग तथा उपनिषद के ज्ञाता हो उसीको वेद को विस्तार से जानने के लिए इतिहास (रामायण, महाभारत) तथा पुराण पढना चाहिए । नहीं तो अल्पशिक्षितों से वेद इसलिए दूर रहता

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हमारी संस्कृति के धरोहर ।

हमारी संस्कृति के धरोहर ।श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्मा अनन्तं शास्त्रं बहुवेदितव्यं स्वल्पश्चकालो बहवश्च विघ्नाः ।यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥ सनातन संस्कृति में शास्त्रों की सङ्ख्या अनन्त कहागया है । परन्तु हमारी आयु सीमित है । अतः जैसे हंस पानी में से दुध छान कर पी जाता है, हमें भी शास्त्रों का सार जान लेना चाहिए । हमारे

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पुराणों के दशलक्षण ।

श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्मा पुराणों के दशलक्षण । अत्र सर्गो विसर्गश्च स्थानं पोषणमूतयः । मन्वन्तरेशानुकथा निरोधो मुक्तिराश्रयः ॥ श्रीमद्भागवतम् द्वितीयस्कन्ध दशमोऽध्यायः में पुराणों के दशलक्षण नहीं, परन्तु श्रीमद्भागवत के विषयवस्तु का निर्द्देश हैं । यह है सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति (कर्मवासना से बन्धन), मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति, आश्रय । श्रीमद्भागवतपुराणम् द्वादशस्कन्धः सप्तमोऽध्य़ायः  में पुराणों के दशलक्षण

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ज्योतिष

ज्योतिष । श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा वेद हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ताः कालानुपूर्व्या विहिताश्च यज्ञाः ।तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञान् ॥ याजुषज्योतिषम् ३॥ ज्योतिषामयनं चक्षुः । ज्योतिष वेद के चक्षुस्थानीय है, जिससे भूत-भविष्यत जाना जा सकता है । वेदाङ्गज्योतिष कालगणना शास्त्र है । लगध कृत ऋक्, यज्जुः, अथर्व ज्योतिष प्राप्त होते हैँ । ज्योतिशील पिण्ड यय़ा स्वज्योति

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