Essays of gurudeva

चतुर्विध पुरुषार्थ ।

चतुर्विध पुरुषार्थ । श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा प्रजापति ने एकलक्ष अध्याय का प्रथम धर्मार्थकाममोक्ष सम्बलित ग्रन्थ लिखा । उसमें आन्विक्षिकी (आत्मविद्या), त्रयी (वेदों का प्रक्रिया सम्बन्धी चर्चा), वार्ता (वृत्तिरस्याम् अस्तीति – वृत्ति सम्बन्धी ज्ञान), तथा दण्डनीति (राज्यशासन कला) यह चार विभाग थे । मनु ने उसका धर्मसम्बन्धी आन्विक्षिकी भाग का संकलन कर तथा अन्य विषयों को गौण […]

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भाषा की सृष्टि तथा विभाग ।

भाषा की सृष्टि तथा विभाग । श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा वाचं देवा उपजीवन्ति विश्वे वाचं गन्धर्वाः पशवो मनुष्याः । तैत्तिरीयब्राह्मणम् ।देव, गन्धर्व, पशु तथा मनुष्य वाक् (वचँ परि॒भाष॑णे – communication) के द्वारा ही जीवनके समीपतम प्रयोजन पूर्ण करने में समर्थ होते हैं । यहाँ देवा (देवनमिह क्रीडा यथा बालः कन्दुकैर्नित्यमिति हलायुधः – त्रयस्त्रीगंशत् तु एव देवा –

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Relativity & Thermodynamics – a Vedic analysis

RELATIVITY & THERMODYNAMICS – A VEDIC ANALYSIS. -Shri Basudeba Mishra Sharma What is mass (परिमाणम् – परिमितव्यवहार असाधारणकारणम् – unique measurable properties of an object)? The definition that it is the measure of the amount of matter (वस्तु) in a body is vague. It simply substitutes the word matter for mass, without clarifying what is

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शब्दब्रह्म और परम्ब्रह्म ।

शब्दब्रह्म और परम्ब्रह्म । -श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा मैत्रायणी उपनिषद 6-22 में कहा गया है –द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये शब्दब्रह्म परं च यत् ।शब्दे ब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति । अमृतविन्दु उपनिषद् 1-17 में भी कहा गया है –द्वे विद्ये वेदितव्ये तु शब्दब्रह्म परं च यत् ।शब्दब्रह्मणि निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ ब्रह्म का दो भेद जानने योग्य है –

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