उपनिषद-सम्बन्धित लेख (Upanishad related Articles)

उपनिषत् के पुरुष का स्वरूप

उक्थका सम्बन्ध विश्वके त्रिवृत् करण से है । विश्वमें उक्थ, अर्क, अशीति तीन विभाग है । इन्हे आत्मा, प्राण और पशु भी कहते हैं । जो केन्द्रमें है, जिसके सत्तासे विश्वका अथवा किसी विश्वसन्तान का सत्ता है, उसे उक्थ कहते हैं । उक्थसे निकलने वाले रश्मीयां अर्क कहलाती है । वाहर के भाग अशीति है, […]

उपनिषत् के पुरुष का स्वरूप Read More »

ॐ कार, प्रणव और उद्गीथ। ॐ प्रेति चेति चेति।

ॐ “कार”है। “कृ॒ञ् कर॑णे” अथवा “कृ॒ञ् हिं॒साया॑म्” धातु से “भावे घञ्”प्रत्यय से उत्पन्न “कारः”शब्द वधः अथवा निश्चयात्मक है। इसीलिये प्रत्येक अक्षरको, जो स्वयं को निश्चितरूपसे अन्य अक्षरों से भिन्न कर के (अपमर्दन कर के) दिखाता है, उसे “कार”कहते हैं – जैसे अकार, ककार, यकार आदि। “शिक्षा”नामक वेदाङ्ग ग्रन्थों में इसके विषय में विशेष चर्चा किया

ॐ कार, प्रणव और उद्गीथ। ॐ प्रेति चेति चेति। Read More »

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते। उत्तमः पुरुषस्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः”। गीता (15-16/17) लोके (लोकृँ॒ दर्श॑ने – दृश्यभुवनम्) क्षरः च अक्षरः इमौ द्वौ एव पुरुषौ (पुरयति बलं यः पुर्षु शेते य इति वा) अस्ति। सर्वाणि भूतानि (“भू सत्ता॑याम् + क्तः” – क्षित्यादि पञ्च) क्षरः (विकारजातम्। विकारः प्रकृतेरन्यथाभावः। परिणामः)। कूटस्थः (कूटँ॒

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च Read More »