वेद स्तुति मीमांसा

वेद में देवताओं की स्तुति है। परन्तु उपरोक्त वर्णना में वेद को पुरुषरूप से कल्पना कर उसके नाम-रूप-कर्म का वर्णन कियागया है। इस प्रकार वेद का स्वरूप वर्णन करने का कारण क्या है ? इस प्रश्न का विचार करने से पूर्व देखते हैं कि मन्त्र के देवता और उसकी स्तुति क्या है। तथा स्तुति के फल स्वरूप जो आशिर्वाद हमें मिलता है, वह क्या है?

वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 5 आत्मा

आत्मा शब्द सापेक्ष है। जैसे पिता अथवा पुत्र कहसे से प्रश्न उठता है कि किसका पिता अथवा पुत्र, उसीप्रकार आत्मा कहने से प्रश्न उठता है कि किसका आत्मा। “यदुक्थं सत् यत् साम सत् यद् ब्रह्म स्यात् स तस्य आत्मा” – जो किसी का उक्थ-ब्रह्म-साम है, वह उसकी आत्मा है। उक्थ क्या है।

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वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 4 मन-प्राण-वाक्

कौषीतकि ब्राह्मणम् 8-4 में कहा गया है कि वायुर्वै प्राणः। ऐतरेय ब्राह्मणम् 9-3-26 में भी कहा गया है कि वायुर्ही प्राणः। इससे प्राण का वायु रूपत्व सिद्ध है। परन्तु प्राण वायु नहीं है। न वायुक्रिये पृथगुपदेशात् – प्राण वायुक्रिया नहीं है, कारण इसका पृथक् उपदेश किया गया है – यह वेदान्त वाक्य से यही प्रमाणित होता है। सांख्यप्रवचन भाष्य 2-31 में इसका समाधान किया गया है कि प्राणादि पञ्च वायुवत् सञ्चाराद् वायवो ये प्रसिद्धाः – प्राणादि पञ्च, वायु जैसा सञ्चरण करते हैं, अतः उन्हे वायु कहते हैं। प्राण एक करण है जो कार्यसिद्धि में सहायक है।

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वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 3

षट्त्रिंशत्तत्त्वानि विश्वम्। (पर्शुरामकल्पसूत्रम्)। यह विश्व छत्तिश तत्त्वों का समाहार है। यह तत्त्व क्या हैं?

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वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 2

रूपँ रूपक्रि॒याया॑म्, रुपँऽ वि॒मोह॑ने अथवा रु॒ङ् गतिरोष॒णयोः॑ धातु से रूप शब्द निष्पन्न हुआ है। अनेक अवयव द्रव्यगत अनेक रूपों का एक रूप कार्य होता है (रूपाणां रूपम् – रूपयुक्त द्रव्यों के समूह का एक रूप होता है)। अनेकद्रव्य समवेतत्व रूपविशेष होने पर (अनेकद्रव्यवत्व, उद्भूतत्व, रूपवत्व के रहने पर) रूप का प्रत्यक्ष होता है (अनेकद्रव्यसमवायाद् रूपविशेषाच्च

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वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 1

वेद स्तुति के विषय में हमें निम्न श्लोक प्राप्त होते है – ऋग्वेदः श्वेतवर्णश्च द्विभुजो रासभाननः।अक्षमालाम्बुपात्रं च बिभ्रन् स्वाध्ययने रतः॥अजाऽऽस्य पीतवर्णश्च यजुर्वेदोऽक्षसूत्रवान्।वामेचाङ्कुशपाणिस्तु भूतिदो मङ्गलावहः॥नीलोत्पलदलाभासः सामवेदो हयाननः।अक्षमालाधरः सव्ये वामे कम्बुधरः स वै॥अथर्वणाभिधो वेदो धवलो मर्कटाननः।अक्षसूत्रं च खट्वाङ्गं बिभ्रन् वै विजयप्रदः॥ वेद में देवताओं का स्तुति है। परन्तु उपरोक्त वर्णना में वेद को पुरुषरूप से कल्पना कर

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