Veda

Interpreting Vedanta sootras

A friend wanted a proper interpretation of the fifth सूत्र of ब्रह्मसूत्रम्. Since ALL COMMENTARIES in it are not correct, the proper interpretation is given below. The fifth सूत्र of ब्रह्मसूत्रम् introduces माया through the word ईक्षतेः. In all branches of the Vedas, the word ईक्षत refers to the creation event. For example, गोपथब्राह्मणम् says: […]

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भारतके प्राचीन घरोहर – वेद स्वरूप मिमांसा

गीता (15-15) में कहा गया है कि वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यः। अर्थात सम्पुर्ण वेदके द्वारा मैं ही जानने योग्य हुँ। परन्तु यह वेदतत्व क्या है। इस गीता वाक्यमें मैं के द्वारा पुरुष का वोध कराया जा रहा है। उसके अनन्तर सव कुछ प्रकृति है। पुरुष शव्द से षोडशकल विश्वात्मा अव्ययपुरुष को निर्देशित किया गया है। प्रकृति

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उपनिषत् के आत्मा का स्वरूप

by Basudeba Mishra न प्राणमन्तरात्मेत्याख्यायते। तत्र वागुपहिता अथ वागेवेदं सर्वम्।यस्मान्न जातः परो अन्यो अस्ति य आविवेश भुवनानि विश्वा।प्रजापतिः प्रजया संरराणस्त्रीणि ज्योतींषि सचते स षोडशी।।शुक्लयजुर्वेद 8-36।। संसार में जो कुछ जातप्रपञ्च है, वह सव जिससे उत्पन्न हुये हैं – विना जिसके सव अनुपपन्न है – वह विश्व के सृष्टब्रह्म है, जिसे अपरब्रह्म भी कहते हैं। जो

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ईशोपनिषत् मन्त्रव्याख्या 2

अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः ॥ ये अविद्याम् उपासते ते अन्धं तमः प्रविशन्ति । ये उ विद्यायां रताः ते तमः भूयः तमः इव प्रविशन्ति ॥ इसका आक्षरिक अर्थ है, जो अविद्या का उपासना करते हैं वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं । जो केवल विद्या में ही

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