Veda

वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 3

षट्त्रिंशत्तत्त्वानि विश्वम्। (पर्शुरामकल्पसूत्रम्)। यह विश्व छत्तिश तत्त्वों का समाहार है। यह तत्त्व क्या हैं?

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वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 2

रूपँ रूपक्रि॒याया॑म्, रुपँऽ वि॒मोह॑ने अथवा रु॒ङ् गतिरोष॒णयोः॑ धातु से रूप शब्द निष्पन्न हुआ है। अनेक अवयव द्रव्यगत अनेक रूपों का एक रूप कार्य होता है (रूपाणां रूपम् – रूपयुक्त द्रव्यों के समूह का एक रूप होता है)। अनेकद्रव्य समवेतत्व रूपविशेष होने पर (अनेकद्रव्यवत्व, उद्भूतत्व, रूपवत्व के रहने पर) रूप का प्रत्यक्ष होता है (अनेकद्रव्यसमवायाद् रूपविशेषाच्च

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वेद स्तुति (नाम-रूप-कर्म) मीमांसा – 1

वेद स्तुति के विषय में हमें निम्न श्लोक प्राप्त होते है – ऋग्वेदः श्वेतवर्णश्च द्विभुजो रासभाननः।अक्षमालाम्बुपात्रं च बिभ्रन् स्वाध्ययने रतः॥अजाऽऽस्य पीतवर्णश्च यजुर्वेदोऽक्षसूत्रवान्।वामेचाङ्कुशपाणिस्तु भूतिदो मङ्गलावहः॥नीलोत्पलदलाभासः सामवेदो हयाननः।अक्षमालाधरः सव्ये वामे कम्बुधरः स वै॥अथर्वणाभिधो वेदो धवलो मर्कटाननः।अक्षसूत्रं च खट्वाङ्गं बिभ्रन् वै विजयप्रदः॥ वेद में देवताओं का स्तुति है। परन्तु उपरोक्त वर्णना में वेद को पुरुषरूप से कल्पना कर

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Interpreting sat-chit-aananda – सत्-चित्-आनन्द

by Basudeba Mishra I will not comment on the interpretation of others, but will confine to the Vedic interpretation based on पर्शुरामकल्पसूत्रम्, छान्दोग्य उपनिषत् and allied texts.  Incidentally, Vedanta is not an independent thought, but resolves the apparent contradictions among the Upanishads. Hence, its original name is Uttara Mimaamsaa (the last resolution). There are two

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वेद में अवतार २ – मत्स्य अवतार

नासदीयसूक्त (ऋग्वेद 10-129) के अनुसार सृष्टि से पूर्व सवकुछ अवात अर्थात् प्राणशून्य (अतः क्रियाशून्य) था । उस समय नार (न+अर) सर्वत्र व्याप्त था । निषेधात्मक अ अक्षर के साथ गत्यात्मक र अक्षर युक्त होनेसे अर शव्द का अर्थ गतिराहित्य है । न अक्षर के द्वारा उसका पुनः निषेध करने से नार शव्द का असामान्य अर्थ

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