Basudeba Mishra
पुरुषसूक्तमें आए यज्ञेनयज्ञमयजन्त देवा: के अर्थ के सम्बन्धमें अनेक भ्रान्तियाँ हैं । वह कौनसा यज्ञ था । देवता कौन हैं । वे यज्ञ द्वारा कैसे यज्ञ का यजन किए । उसका परिणाम क्या हुआ । इसीमें बहुत सारे वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं । यहाँ यज्ञ का अर्थ अग्नि मेँ घृताहुति नहीं है । यज् सङ्गतिकरणे से यहाँ यज्ञ का अर्थ अग्नि और सोम का सङ्गतिकरण है जिससे सर्वहुतयज्ञ का विकास होता है। इसलिये ऐतरेयब्राह्मणम् मेँ कहागया है अग्निर्वै देवानामवमो विष्णुः परमस्तदन्तरेण सर्वा अन्या देवताः । अग्नि ८ हैं । रुद्र ११ हैं । आदित्य १२ हैं। अश्वी २ या इन्द्र और प्रजापति को मिला देने से ३३ देवता हो जाते हैँ । इन्हीके विषयमें बृहदारण्यक उपनिषदमें कहा गया है । सर्वहुतयज्ञसे पञ्चीकरण होता है । इसिलिये यज्ञेनयज्ञमयजन्त देवा: कहागया है । पञ्चीकरणसे अणु, रेणु, सूक्ष्म, स्थुल क्रमसे भूतोंका विकास होता है । यही भूतोंका प्रथम धर्म है । इसिलिये कहागया है कि तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् । ते ह नाकं महिमानः सचन्ते में सचन्ते शव्द सच् समवाये अर्थमें व्यवहार कियागया है । सर्वहुतयज्ञमें यह ३३ देवता को ३३ अहर्गण कहा जाता है ।
- इन ३३ अहर्गणोंमें ८ अग्नि और १ दिक् सोम को मिलाकर ९ अहर्गणोंको त्रिवृत् कहते हैं, जिसे पृथ्वीलोक भी कहाजाता है । यह विष्णुका प्रथम विक्रम है । विशति प्रविशति अर्थमें सब में प्रविष्ट तत्व को विष्णु कहा जाता है।
- १० से १५ अन्तरिक्षलोक और विष्णुका द्वितीय विक्रम है ।
- १६ से २१ स्वर्गलोक और विष्णुका तृतीय विक्रम है । इसिलिये विष्णुको त्रिविक्रम कहागया है । यह सबसे छोटा होनेसे वामन कहलाता है ।
- १७वें अहर्गणको ब्रह्मविष्टप नाचिकेत स्वर्गः कहाजाता है ।
- १८वें अहर्गणको ऋतधामा आग्नेयस्वर्गः कहाजाता है ।
- १९वें अहर्गणको अपरोदकः वायव्यस्वर्गः कहाजाता है ।
- २०वें अहर्गणको अपराजित ऐन्द्रस्वर्गः कहाजाता है ।
- २१वें अहर्गणको विष्णुविष्टप नाकस्वर्गः कहाजाता है । इसे ऐन्द्रः ऐन्द्राग्नी स्वर्गः भी कहते हैं ।
- २२वें अहर्गणको अधिद्यौ वारुणस्वर्गः कहाजाता है ।
- २३वें अहर्गणको प्रद्यौः मुच्युस्वर्गः कहाजाता है ।
- २४वें अहर्गणको रोचन ब्राह्मस्वर्गः कहाजाता है ।
- २५वें अहर्गणको इन्द्रविष्टप प्रत्यस्वर्गः कहाजाता है । यही सूर्यबेधी कहलाता है ।
- १८वें से २४वें तक सप्त वै देवस्वर्गाः ।
- २५ अहर्गणतकको 3 वार चयन करनेसे न स पुनरावर्तते – न स पुनरावर्तते ।
- २१वाँ अग्नि सौरविद्युत कहलाता है ।
- २५ वाँ अग्नि सौम्यविद्युत कहलाता है।
- उसके उपर ३३ तक सोम है ।
इसीसे सूर्यमण्डलका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है । प्रजापतिर्वै सप्तदश में १७वें अहर्गणका ही निर्देश है । यह यूप भी कहलाता है । इसीसे मैंने Nuclear Physics in the Vedas नामक निबन्ध लिखा था ।