प्राचीन ओडिशा के नौ शक्ति। The 9 shaktis of ancient Odisha.
-वासुदेव मिश्रशर्म्मा।
वर्षाणां भारतं श्रेष्ठं देशानामुत्कलः स्मृतः।
उत्कलेन समो देशो देशो नास्ति महीतले। कपिल पुराण 1-7।
तस्मिन्नोड्रे सदा सन्ति कृष्णार्कपार्वतीहराः।
एवमीशस्य क्षेत्रं तु सर्वपापप्रणाशनम्। तत्रैव 2-3।
ख्रीष्टिय द्वितीय शताव्दि में टलेमी अपने ग्रन्थ में भारतीय भूगोल के चर्चा करते हुये ओडिशा के 14 प्राचीन बन्दरगाहों का नाम गिनाये हैं, जो कोसवा, आडामस्, केवला, दोसरन्, मिनाशर, मपोर, ताइन्डिस, सिप्परा, कोटवार, मानदा, कन्नागर, कटिकर्दम, ननिचेना तथा पालुर है। ननिचेना अथवा ननिज्ञा नीलाचल – पुरी, कटिकर्दम – कटक, कन्नागर – कोणार्क, मानदा महानदी के मुहाण (जहाँ नदी समुद्र से मिलती है), ताइन्डिस – ब्राह्मणी, दोसरन् – तोषली, आदि है। परन्तु टलेमी ने माणिकपाटणा, पालुर, कलिङ्गपतन, आदि अन्य अनेक बन्दर को छोड दिया था। कारण वह स्वयं ओडिशा नहीं आये थे। नाविकों के मुख से जो सुने थे, वही लिख दिया था।
नवम तथा दशम शताब्दी में आरब तथा पारसिक लेखकों के पुस्तक से अनेक तथ्य मिलते हैं। इब्न खुरदहबिन् इब्न रस्ता के पुस्तक, तथा हादुद-अल-अलाम पुस्तक में भौम राजाओं के माहिष्य (मेदिनीपुर), झरखारो (आदिवासी अध्युषित स्थान), गञ्जाम, कलिङ्गनगर आदि स्थान में बन्दर होना लिखा गया है। बालेश्वर, चाँदबाली, धामरा, हरिदासपुर में भी बन्दर थे। इन में से धामरा, अस्तरङ्ग आदि का आधुनिकी करण हो रहा है।
शिशुपालगढ, जउगढ, ताम्रलिप्ति, खालकटापाटणा, कलिङ्गपतन, चन्द्रकेतुगढ, माणिकपाटणा, राधानगर आदि में पुरातात्विक खुदाई से ख्रीष्ट युग के ध्वंसावशेष से ओडिशा के विदेशों यथा उत्तर बालि, सुमात्रा, मध्य वियेतनाम, श्रीलङ्का आदि के साथ नौवाणिज्य के सम्बन्धों का पता चलता है। उसी प्रकार का सम्बन्ध तामिलनाडु के साथ भी थे। रोमन सम्राट कनष्टान्टाइन द्वारा प्रचलित स्वर्णमुद्रा (Warmington E.H. The Commerce Between the Roman Empire and India.1974) तथा अन्य युरोपीय प्राचीन मुद्रा गुमडा, ब्राह्मणघाटी तथा ताम्रलिप्ति में मिला (Turner P.J. 1989. Roman Coins from India, Royal Numismatic Society, Special Publication No: 22,1989), जिससे युरोप के देश के साथ ओडिशा के वाणिज्यिक सम्बन्धों का पता चलता है। अन्य ऐतिहासिक ओर गवेषक भी (Pradhan D., P. Mohanty and J. Mishra 2000. Manikapatna: An Ancient and Medieval Port on the Coast of Odisha, in Archaeology of Orissa, 2000, Behera K.S. Maritime Activities of Odisha, in Maritime Heritage of India 1999) इस विषय पर अनेक गबेषणात्मक पुस्तक लिखे हैं।
सम्राट अशोक के शिलालेख से पता चलता है कि ताम्रलिप्ति से आन्ध्र पर्यन्त सामुद्रिक पथ था। खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख में उनका पाण्य राजाओं को परास्त करने का वर्णन है (Jayaswal K.P. The Hathigumpha Inscription of Kharavela, Epigraphica Indica, 1983)। अन्य वहुत पुस्तके ( विशेष कर Ardika I.W. and P. Bellwood 1991. Sembiran: the Beginnings of Indian Contact with Bali, Antiquity LXV(247) 1991) भी विदेश के साथ ओडिशा के नौवाणिज्य का पुष्टि करते हैं। मालय तथा इन्दोनेशिया में विदेशीयों को क्लिङ्ग कहना भी इस प्रकार के निर्देश करता है। जाभा (Java) का प्राचीनइतिहास में लिखा है कि कलिङ्ग के राजा ने 25000 परिवार को कलिङ्ग से ले कर वहाँ वसाया जो समृद्ध होते रहे। जाभा को चीना भाषा में हो-लिङ्ग कहते हैं। यह कलिङ्ग के रूपान्तर है।
रघुवंशम्, आर्यमञ्जुश्रीकल्प, कथासरित् सागर, विभिन्न जातक कथाएं, महावंस, हुएन् सां के भ्रमण काहिणी, आदि भी इस तथ्य को पुष्टि करते हैं।