शरीर तथा व्यक्तित्व की परिभाषा । – Basudeba Mishra
संहतिसारानूकस्नेहोन्मानप्रमाणमानानि ।
क्षेत्राणि प्रकृतिस्थो मिश्रमेतदपि शारीरम् ।।
समुद्रकृत शास्त्रके व्यक्तित्वनिरुपणाधिकारः में संहति, सार, अनूक, स्नेह, उन्मान, प्रमाण, तथा मान – इनका संघात ही शरीर का परिभाषा है ।
एक यन्त्रवत्, मांस, स्नायु, एवं हड्डियोंके सन्धि, बन्ध, एवं पारष्परिक अविरुद्ध तथा निविड मिलन को संहनन, संघात अथवा संहति कहते हैं ।
चर्म, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, तथा शुक्र धातुको अनुक्रमसे सार कहा जाता है ।
पूर्वजन्मके कर्मफलके कारण, इह जन्ममें जो सत्त्व, स्वरूप, गति आदि अनुक्रियते – उसीके अनुरूप होते हैं, उसे अनुक कहते हैं । दर्शनमात्र चित्तमें आनन्द प्रदान करने वाले प्रीणन – प्रेम को स्नेह कहा जाता है । सुख, सौभाग्य आदि स्नेहमूलक होते है । पुण्यवानों के जिह्वा, दन्त, त्वचा, चक्षु, नख, तथा केश में इसका प्रतीति होता है । मनुष्यके शरीरका भार (weight) ही उसका उन्मान होता है । यह पृथुलता (fatness) नहीं है । पदतल से शिर पर्यन्त शरीर का आरोह (height) को प्रमाण अथवा आयाम कहते हैं । एक जलपूर्ण पात्रमें किसी पुरुषको वैठा देने से जितना परिमाण जल निकल आता है, उसे उस पुरुषका मान अथवा परिमाण (volume) कहते हैं ।
इनका भेद से पुरुष का व्यक्तित्व में भेद होता है ।
मानव स्वभाव पृथ्वी, जल, अग्नि, पवन, आकाश, देव, मानव, राक्षस, पिशाच तथा तीर्यग्योनि जैसे होते हैं ।
अल्प वयस में अथवा जन्मसे ऐश्वर्य, समृद्धि, व्यञ्जन, प्रभुत्वव्याज – अनायास अथवा अकारण प्रभुता पाने वाले अल्पायु होते है । राजीव गान्धी इसका एक उदाहरण है ।