हिन्दू जीवन पद्धति – Hindu Jeewan Paddhati

Hindu Jeewan Paddhati

जीवन पद्धति एक दृष्टि में

१. ब्राह्म मुहूर्त में जागना चाहिए-ब्राह्ममुहूर्त्ते उत्तिष्ठेत्।
२. मूत्र – मल का विसर्जन करें-कुर्यान्मूत्रं पुरीषं च ।
३. शुद्धि करें-शौचं कुर्याद् अतन्द्रितः ।
४. दन्तधावन करें- दन्तस्य धावनं कुयात्।
५. स्नान करें-प्रातः स्नानं समाचरेत्।
६. तर्पण करें- तर्पयेत् तीर्थदेवताः ।
७. शुद्ध पवित्र वस्त्र पहनें-ततश्च वाससी शुद्धे ।
८. उत्तरीय (दुपट्टा) कन्धे पर लें-उत्तरीय सदा धार्यम्।
९. तिलक करें-ततश्च तिलकं कुर्यात् ।
१०. प्राणायाम-सन्ध्यावन्दन करें-प्राणायामं ततः कृत्वा संध्या-वन्दनमाचरेत्।।
११. विष्णुपूजा अवश्य करें-विष्णुपूजनमाचरेत्।
१२. अतिथि सत्कार करें-अतिथिंश्च प्रपूजयेत्।
१३. गोग्रास एवं जीवों को ग्रास दें- ततो भूतबलिं कुर्यात्।
१४. पूर्वमुख मौन होकर भोजन करें-ततश्च भोजनं कुर्यात् प्राङ्मुखो मौनमास्थितः ।
१५. भोजन कर मुख और हाथ धोयें-शोधयेन्मुखहस्तौ च ।
१६. ताम्बूल भक्षण करें-ततस्ताम्बूलभक्षणम् ।
१७. अपने कार्य में संलग्न हो जायें,
अपनी जीविका का कार्य करें-
व्यवहारं ततः कुर्याद्बहिर्गत्वा यथासुखम्।
१८. प्रात:सायं संध्या के पश्चात् वेद पढ़ें-वेदाभ्यासेन तौ नयेत् ।
१९. गोधूलि में धर्म चिन्तन करें-
(सूर्यास्त के बाद ४८ मिनट की गोधूलि होती है।)
गोधूलौ धर्मं चिन्तयेत् ।
२०. तत्पश्चात् स्वकार्य का चिन्तन करें-स्वकार्यं चिन्तयेत् ततः
२१. वैश्वदेव करें-सायं प्रातर्वैश्वदेवः
२२. हाथपैरधोकर भोजन करें- कृतपादादिशौचस्तुभुक्त्वा सायं ततो गृही।
२३. दोयाम (छःघण्टा) शयन करें-
(प्रायशः रात्रि नौ-दस बजे के बाद बिना विलम्ब किये अवश्य सो जायें।)
यामद्वयंशयानो हि ब्रह्मभूयाय कल्पते।
२४. पूर्व दिशा की ओर सिर करके सोयें- प्राक्शिराः शयनं कुर्यात् ।
२५. उत्तर की ओर सिर किसी भी स्थिति में न करें- न कदाचिदुदक् शिराः ।
२६. दक्षिण सिर करके सोना भी शुभकारी होता है- दक्षिणशिराः वा ।
२७. रात्रि सूक्त का जप करके सोयें- रात्रिसूक्तं जपेत्स्मृत्वा ।
२८. अपनी शय्या को वैदिक (गायत्री) मंत्र और
गरुड़ मंत्र से बाँध कर सोना चाहिए
वैदिकैगारुडैर्मन्त्रै रक्षां कृत्वा स्वपेत् ततः।
२९. विष्णुभगवान् को प्रणाम करके शवासन या समाधि में सोना चाहिए। ‘नमस्कृत्वाऽव्ययं विष्णुं समाधिस्थं स्वपेन्निशि’
३०. पानीपीने हेतु सिर की ओर पूर्णकुम्भ रखें-माङ्गल्यं पूर्णकुम्भं च शिरः स्थाने निधाय च ।
३१. ऋतुकाल (चतुर्थरात्रि से सोलहरात्रि) में पत्नी गमनकरें-ऋतुकालाभिगामीस्यात्स्व दारनिरतः सदा ।
३२. अहिंसा, सत्य, दया, शम, दान, स्त्रीरक्षा, रति (काम) शुद्धि रखें-अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतानुकम्पनम्।
शमो दानं यथाशक्तिर्गार्हस्थ्यो धर्म उच्यते । ।

हिन्दू जीवन पद्धति का यही सुव्यवस्थित पवित्र वैदिक एवं आयुवर्द्धक क्रम ब्रह्मपुराण में दिया हुआ है। इसे आलस्य, उपेक्षा, नास्तिकता या शरीर सुख मोह के कारण नहीं तोड़ा जाता है। इन श्रेष्ठ क्रमों का जानबूझकर जो अवहेलना करता है वह साक्षात् पशु होता है-

इत्येतदखिलं प्रोक्तमहोरात्राश्रितं मया ।
ब्राह्मणानां कृत्यमेतदपवर्गफलप्रदम्।।

नास्तिक्यादथवाऽऽलस्याद् ब्राह्मणो न करोति यः।
स याति नरकं घोरं पशुयोनौ च जायते ।।

डॉ कामेश्वर उपाध्याय द्वारा रचित पुस्तक “हिन्दू जीवन पद्धति” से प्रचारार्थ उद्धृत। पुस्तक प्राप्त करने का पता निम्नाङ्कित है।
प्राप्ति स्थान
आचार्य डॉ. कामेश्वर उपाध्याय
“देवतायन”, 96, जानकी नगर, पोस्टऑफिस- बजरडीहा, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
पिनकोड – 221006
दूरभाष – 94513 83051