हिन्दू जीवन पद्धति के ८१ बिन्दु

॥ श्रीहरिः ॥

दक्ष प्रजापति द्वारा श्रेष्ठ जीवन जीने के ८१ बिन्दुओं का निर्धारण दक्ष स्मृति में किया गया है। क्रमशः इनका विवरण दिया जा रहा है-

नौ कर्म

१. संध्या– त्रिकाल अथवा प्रातः काल में प्राणायाम एवं गायत्री मंत्र जप करें।

२. स्नान– सुबह – सायं (उभौकालौ) अथवा प्रातः काल अवश्य स्नान करें।

३. जप– इष्ट देवता एवं आवश्यकतानुसार अभीष्ट देवता का जप करें।

४. होम– प्रतिदिवसीय हवन से आयु एवं समृद्धि बढ़ती है। ५. स्वाध्याय- वेद पाठ करें अथवा जो वेदज्ञ नहीं हैं गायत्री मंत्र जप करें।

६. देवपूजा– विष्णु, शिव, देवी, सूर्य, गणपति, हनुमान आदि की पूजा प्रतिदिन नियमपूर्वक अवश्य करें।

७. वैश्वदेव– पञ्चमहायज्ञ प्रतिदिन करें ।

८. अतिथि सत्कार

९. संविभाग (यथाशक्ति देव- ऋषि- मनुष्य-गुरु- दुःखी- तपस्वी – मातापिता को भोजन उपलब्ध कराना संविभाग कहलाता है।)

नौ विकर्म

१०. अनृत– झूठ न बोलें।

११. पर स्त्री गमन न करें।

१२. अभक्ष्य– मांस आदि अभक्ष्य न खायें। १३. अगम्या स्त्री गमन न करें।

१४. अपेय पान– मदिरा आदि का पान न करें।

१५. स्तेय– चोरी न करें।

१६. हिंसा न करें, अहिंसक रहें।

१७. वेद विरुद्ध आचरण न करें। नास्तिक न बनें।

१८. मित्रधर्म बहिष्कार– मित्र द्रोह कभी न करें।

नौ सुधा (अतिथि सत्कार)

१९. अतिथि को मन से आत्मीयता प्रकट करें।

२०. आँख से स्नेह तथा तरलता दिखलायें।

२१. मुख पर अर्थात् चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कुराहट रखें। २२. सौम्य वाणी अर्थात् मधुरवाणी से सत्कार करें।

२३. अतिथि के आने पर अभ्युत्थान करें (खड़ा हों ) । २४. इहागच्छ- ‘इधर आइये, आसन ग्रहण कीजिए’ बोलें।

२५. प्रिय पृच्छा- ‘कृपा कर आगमन का कारण बतलायें’ ।

२६. प्रिय आलाप- अतिथि से मधुर वार्तालाप करें। अतिथि के जाते समय कुछ दूर तक अनुगमन करें।

२७. अनुव्रज्या- आताच

नौ इषद् दान

२८. भूमि– शुद्ध स्थान पर बैठाने का उपक्रम करें। २९. जल- पीने के लिए जल लाने का उपक्रम करें।

३०. तृण (आसन)– शुद्ध; उत्तम आसन पर आदर पूर्वक बैठायें।

३१. दोनों पैरों को धोयें। प्राचीन भारत में अतिथि के दोनों पैर धोये जाते थे।

३२. अभ्यंग– तेल; साबुन, सुगन्ध, तौलिया आदि दें। ३३. आश्रय- तत्काल विश्राम आदि का स्थान निर्दिष्ट करें।

३४. शयन– सोने का स्थान निर्दिष्ट करें।

३५. भोजन– यथा शक्ति भोजन करायें।

३६. मृज्जल– मृत्तिका, जल, साबुन आदि पैर हाथ-मुख धोने को दें।

नौ गोपन

३७. आयु– अनावश्यक अपनी उम्र न बतलायें ।

३८. वित्त– अपनी आर्थिक स्थिति सभी को न बतलायें ।

३९. गृहच्छिद्र– स्वगृही जनों के दोषों को दूसरों से नहीं बतलायें । ४०. मन्त्र- गुरु मन्त्र, इष्टमन्त्र, गोपनीय वार्ता को दूसरों से नहीं बतलायें ।

४१. मैथुन– यह व्यक्ति का गोपनीय पक्ष है। इसे दूसरों को न बतलायें ।

४२. भेषज– रोग की दवा, चिकित्साचर्या को केवल चिकित्सक से ही कहें। ४३. तप- कौन सा तप, कितना, कब, कहाँ करते हैं, नहीं बतलायें ।

४४. दान– स्वयं द्वारा दिये दान के सन्दर्भ में किसी को न बतलायें ।

४५. अपमान– अपने प्रति किये अपमान को न बतलायें ।

नौ प्रकाश्य

४६. आरोग्य– अपने स्वास्थ्य की चर्चा अन्यों से करें।

४७. ऋणशुद्धि– व्याज मुक्ति की चर्चा सभी से करें। ४८. दान- सुयोग्य व्यक्ति को दान देने की संस्तुति सभी से करें।

४९. अध्ययन– किये हुए अध्ययन की चर्चा गुरु और मित्र से करें।

५०. विक्रय– किसी वस्तु को बेचने के सन्दर्भ में दूसरों से चर्चा करें। ५१. कन्यादान – कन्या विवाह हेतु लोगों से परामर्श करें।

५२. वृषोत्सर्ग– सांढ़ छोड़ने का धार्मिक कृत्य सभी को बतलायें ।

५३. रहः– एकान्त में किये हुए पाप का धर्मज्ञ से पूछ कर प्रायश्चित करें।

५४. अनिन्दित – श्रेष्ठ, शुभ, कल्याणकारी, समाज राष्ट्र के उत्कर्ष परक कर्म का संयमित भाषा में सर्वत्र प्रकाशन करें।

नौ सफल कर्म

५५. माता– स्व अर्जित धन तथा श्रद्धा माता को समर्पित करें।

५६. पिता– स्व अर्जित धन तथा श्रद्धा पिता को समर्पित करें।

५७. गुरु– स्व अर्जित धन तथा श्रद्धा गुरु को समर्पित करें।

५८. मित्र– स्व अर्जित धन एवं बल से मित्र का उपकार करें।

५९. विनीत– विनम्र व्यक्ति की सहायता धन एवं बल से करें।

६०. उपकारी– जो दूसरों का उपकार करता हो उसे दान दें।

६१. दीन– गरीब, विधवा आदि की धन से सहायता करें।

६२. अनाथ– संरक्षकरहित, कमजोर व्यक्ति की सहायता करें।

६३. विशिष्ट– गुण सम्पन्न व्यक्ति की तन-धन-मन से सहायता करें।

नौ असफल कर्म

६४. धूर्त– चालाक एवं धूर्त को कभी दान न दें।

६५. बन्दी– कारागार में निरुद्ध व्यक्ति को धन न दें।

६६. मन्द– बुद्धिहीन व्यक्ति को दिया धन नष्ट जाता है।

६७. कुवैद्य– अयोग्य चिकित्सक को न धन दें, न उससे चिकित्सा करायें। ६८. कितव- जुआरी को दिया धन नष्ट हो जाता है। अतः धन न दें।

६९. शठ– दुष्ट, ढीठ को धन न दें।

७०. चाटुकार– चापलूस को न धन दें, न सटायें।

७१. चारण– अनावश्यक प्रशंसक से दूर रहें। धन न दें।

७२. चोर– चोरी करने वाले को धन न दें।

नौ अदेय

७३. सामान्य धन– अपना रोजमर्रा का धन दूसरे को न दें।

७४. याचित धन– दूसरे से मांग कर लायी वस्तु किसी को न दें।

७५. धरोहर– न्यास को दूसरे को न दें। अपने पास सुरक्षित रखें। ७६. कोष- परिवार तथा स्वयं का संरक्षित धन दूसरे को न दें। ३४ ७७. पत्नी- अपनी पत्नी को दूसरे के हवाले कभी न करें।

७८. पत्नी धन– स्त्री धन को किसी भी स्थिति में दूसरे को न दें।

७९. पैतृक संपत्ति– इसे दूसरे को कभी न स्थानान्तरित करें।

८०. निक्षेप– जमा पूंजी, सर्वस्व को दूसरे को न बतलायें, न दें।

८१. सर्वस्व दान– संतति रहते हुए भी सर्वस्व दान कभी न करें।

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डॉ कामेश्वर उपाध्याय द्वारा रचित पुस्तक “हिन्दू जीवन पद्धति” से प्रचारार्थ उद्धृत। पुस्तक प्राप्त करने का पता निम्नाङ्कित है।
प्राप्ति स्थान
आचार्य डॉ. कामेश्वर उपाध्याय
“देवतायन”, 96, जानकी नगर, पोस्टऑफिस- बजरडीहा, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
पिनकोड – 221006
दूरभाष – 94513 83051