चतुर्विध पुरुषार्थ ।

चतुर्विध पुरुषार्थ ।

श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्म्मा

प्रजापति ने एकलक्ष अध्याय का प्रथम धर्मार्थकाममोक्ष सम्बलित ग्रन्थ लिखा । उसमें आन्विक्षिकी (आत्मविद्या), त्रयी (वेदों का प्रक्रिया सम्बन्धी चर्चा), वार्ता (वृत्तिरस्याम् अस्तीति – वृत्ति सम्बन्धी ज्ञान), तथा दण्डनीति (राज्यशासन कला) यह चार विभाग थे । मनु ने उसका धर्मसम्बन्धी आन्विक्षिकी भाग का संकलन कर तथा अन्य विषयों को गौण कर संक्षिप्त से मानव धर्मशास्त्र का उपदेश किया । अपस्तंब, गौतम, बौधायन और वशिष्ठ के धर्मसूत्र प्रसिद्ध है । मानव धर्मसूत्रको मनुसंहिता अथवा मनुस्मृति कहते हैँ । अन्य १८ स्मृतिग्रन्थ प्रसिद्ध है ।

विशालाक्ष ने उसका अर्थसम्बन्धी त्रयी भाग का संकलन कर तथा अन्य विषयों को गौण कर संक्षिप्त से अर्थशास्त्र का उपदेश किया । उसपर इन्द्रने बाहुदन्त नामक अर्थशास्त्र का उपदेश किया, जिसमें त्रयी को प्राधान्य दिया गया था । वृहष्पति ने वार्ता को मुख्य मान कर वाहर्पत्य अर्थशास्त्रम् का उपदेश किया । शुक्रने दण्डनीति को मुख्य मान कर शुक्रनीति का उपदेश किया । कालक्रम से यह विद्या लोप होता हुआ देख कौटिल्य ने वृहष्पति तथा शुक्र के शास्त्रों को सङ्कलित कर अपना अर्थशास्त्रम् का उपदेश किया ।

शिवानुचर नन्दि ने काम का संकलन कर तथा अन्य विषयों को गौण कर कामशास्त्र का उपदेश किया । उसमें दशहजार अध्याय थे । नन्दिकेश्वरकृत कामसूत्रम् का श्वेतकेतु औदालकीने संक्षिप्त कर एक हजार अध्याय में किया था । बाभ्रव्य पाञ्चाल उसे संक्षिप्त कर एक शत अध्याय में लिखा तथा उसे ७ अधिकरणों में विभाग किया । पाटलीपुत्र नगरके गणिकाओं के अनुरोधसे दत्तक उसके पारदारिक अधिकरणके उपर एक शास्त्र लिखा । तत्पश्चात् चारायण साधारण अधिकरणके उपर, सुवर्णनाभ साम्प्रयोगिक अधिकरणके उपर, घोटकमुख कन्यासम्प्रयुक्तक अधिकरणके उपर, गोनर्दीय भार्याधिकारिक अधिकरणके उपर, गोणिकापुत्र पारदारिक अधिकरणके उपर एवं कुचुमार औपनिषदिक अधिकरणके उपर एकदेशीय शास्त्र लिखा । ऐसे एकदेशीय परम्परासे मूल कामसूत्रम् का स्वरूपविच्युति देखकर वात्सायनने उसका सङ्कलन कर अपना कामसूत्रम् लिखा, जो सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ ।