हमारी संस्कृति के धरोहर ।
हमारी संस्कृति के धरोहर ।श्रीमद्वासुदेव मिश्रशर्मा अनन्तं शास्त्रं बहुवेदितव्यं स्वल्पश्चकालो बहवश्च विघ्नाः ।यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥ सनातन संस्कृति में शास्त्रों की सङ्ख्या अनन्त कहागया है । परन्तु हमारी आयु सीमित है । अतः जैसे हंस पानी में से दुध छान कर पी जाता है, हमें भी शास्त्रों का सार जान लेना चाहिए । हमारे […]
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