पदार्थधर्मसंग्रह का विज्ञान – Corrections to the Standard Model

पदार्थधर्मसंग्रह का विज्ञान – मानक प्रतिरूप का त्रुटी दर्शन तथा संशोधन । – श्रीवासुदेव मिश्र।

आधुनिक विज्ञानमें क्वांटम क्रोमो-डायनेमिक्स (Quantum Chromo-Dynamics or QCD), मानक प्रतिरूप (Standard Model) का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और जटिल सिद्धान्त है । मानक प्रतिरूप आधुनिक विज्ञानका श्रेष्ठतम कृतियों में से एक माना जाता है, जो कि सत्य नहीं है । क्वांटम क्रोमो-डायनेमिक्स के अनुसार एक ऐसा तत्त्व है जिसे रंग आरोपण (color charge) कहते हैं, और वही तत्त्व अन्तर्याम सम्बन्ध (strong nuclear interaction) को नियन्त्रित करता है, जो क्वार्कों को प्रोटोन के भीतर रखता है । कल्पना पर आधारित आधुनिक विज्ञानमें इन तीनों को लाल, सबुज और नील (red, green, and blue) कहते हैं । उसी कल्पना के आधार पर उनके तीन विपरीत गुण भी मानते है (anti-red, anti-green, and anti-blue) जो वास्तव में भ्रमात्मक है । बहुत वर्ष पर्यन्त आधुनिक विज्ञानमें उत्कृष्ट प्रतिसाम्य (Super Symmetry – SUSY) का चर्चा चलता रहा । बहुत लोग इसपर गवेषणा कर PhD उपाधि अर्जन किये तथा अनेक पुरष्कार जीते । उनका कहना था कि प्रत्येक कण (particle) के लिये उसका एक प्रतिसाम्य – supersymmetric particle है, जिसे sparticle कहते हैं । बहुत समय, परिश्रम और अर्थनाश के पश्चात जिनेवा स्थित CERN के Large Hadron Collider (LHC) ने प्रमाणित किया कि ऐसा कुछ प्रतिसाम्य है ही नहीं । यहाँ पर मैं वैदिक विज्ञान से प्रमाणित करुँगा कि विपरीत गुण वाले रंग आरोपण (color charge) जैसे कि anti-red, anti-green, and anti-blue – का सिद्धान्त वास्तवमें कुछ और है ।

सर्वप्रथम जानना होगा कि रंग आरोपण (color charge) का सिद्धान्त क्या है । अणु (atom) का गठन दो पदार्थों का समन्वय से हुआ है – नभ्यस्थ (nucleons, which are also called baryons) जो भावप्रत्यय (directly perceptible) अथवा उपायप्रत्यय (indirectly inferred) हो सकते हैं और सर्वस्थ (leptons) । नभ्यस्थ (nucleons) दो प्रकार के होते हैं – देवाः (protons) और असुराः (neutrons), जो उपायप्रत्यय हैं । इन दोनों नभ्यस्थ कणों को जब भग्न किया गया, तो बहुत सारे पदार्थ मिले जिसे वर्गीकरण करने के लिए बौद्धधर्म का अष्टांग मार्ग पद्धति (eight-fold way) अपनाया गया । अन्त में पता चला कि नभ्यस्थ (nucleons) वस्तुओंका गठन कुछ भग्नांश लिङ्ग (fractional charge) वाले पदार्थ से हुआ है, जिसे क्वार्क कहा जाने लगा । यह क्वार्क अनिरुक्त है – जिसे सामान्य अवस्था में अलग से जाना नहीं जा सकता, तथा अणिमा है – जिससे सूक्ष्मतम कुछ हो नहीं सकता । इसलिए इसे बद्ध (permanently confined) कहते हैं । जो परिवारभूत परिग्रह है (develops into a family), उसे निरुक्त कहते हैं । इनका अपर भाग प्रकृतिलयाः (not separately perceptible or perpetually confined) है । अनिरुक्त-प्रकृतिलयाः से ही महिमायुक्त -निरुक्त की उत्पत्ति होती है । इनके स्थान (पृथ्वी, अन्तरीक्ष, द्यौ) भेद से तीन विभाग हैं, जो वसु-रुद्र-आदित्य से सम्बन्धित हैं । आधुनिक विज्ञानमें इन तीनोंको लिङ्गशक्ति (सामर्थ्य सर्वभावानां – charge) के भेद से up/down, charm/strange, top/bottom quark family कहाजाता है ।

आधुनिक विज्ञानमें इन क्वार्क का लिङ्गशक्ति (charge) +2/3 और -1/3 माना जाता है । परन्तु वैदिकविज्ञान में इनका लिङ्गशक्ति +7/11 और – 4/11 माना जाता है । व्यावहारिक प्रयोगमें वैदिकविज्ञान ही सठीक प्रमाणित होता है । परन्तु आधुनिक विज्ञानमें इसके सम्बन्धित परीक्षण को गुप्त रखा जाता है तथा दबाया जाता है । न्युट्रन के लिङ्गशक्ति को शून्य प्रमाणित करने के लिए यह मिथ्याप्रयास किया जा रहा है । परन्तु न्युट्रन का लिङ्गशक्ति शून्य नहीं है । यह प्रमाणित होनेपर आधुनिक विज्ञानके बहुतसारे सिद्धान्त (जैसे binding energy) भूल प्रमाणित हो जायेंगे । इसीलिए ऐसा मिथ्याप्रयास किया जा रहा है । इस विषय पर कोई भी वैज्ञानिक अनेक प्रयास के पश्चात् भी आजतक वैदिक मत को भूल प्रमाणित नहीं कर सके हैं ।

सर्वस्थ प्रकृतिलयाः है । यह भूमा है – समुद्र जैसे सर्वव्याप्त है । इसके भी स्थानभेद से तीन विभाग है, जिसे समुद्रअर्णव-नभस्वान-सरस्वान कहा जाता है । आधुनिक विज्ञानमें इन तीनोंको electron-muon-tau कहते हैं । यहाँ Electron केलिए समुद्रअर्णव (electron sea) शब्दका व्यवहार कियाजाता है ।

शक्तिः कार्यानुमेयत्वाद्यद्गतैवोपयुज्यते ।
तद्गतैवाभ्युपेतव्या स्वाश्रयाऽन्याश्रयाऽपि वा ॥ वैशेषिके ॥

शक्तिका स्वरूपदर्शन नहीं होता । केवल उसका कार्य देखकर शक्तिका अनुमान किया जाता है (Energy cannot be directly observed, but existence of energy is inferred from its effects on its base or conductor) । अतः शक्तिकी आश्रय वस्तुमें उसकी सत्ता माननी पडेगी (energy can exist only with some conductor – or base) । वस्तु वह है, जिसका निर्माण और सङ्ख्यान किया जा सकता है (particles can be created and counted) । निर्माण (निर् + मा॒ माने॑) का अर्थ दो विपरीत लिङ्ग के मध्यमें शक्तिद्वारा कार्य-कारण रूप से बन्धन है (चन्द्रार्कमध्यमा शक्तिर्यत्रस्था तत्र बन्धनम्) । इसमें दोनों लिङ्ग एक अन्य से आहत हो कर अपूर्व योगज सृष्टि करते हैं । सङ्ख्यान (सम्यक् + ख्या॒ प्र॒कथ॑ने) का अर्थ जिस एकरूप वस्तुसामान्य का अलग-अलग भेद किया जा सकता है (भेदहेतुत्वमाश्रित्य सङ्ख्येति व्यपदिश्यते) । मूल वस्तुओं का एकरूपता भी एक स्वभाव है । एकजातीय दो अणुओं में से एक अणु (proton or neutron) अन्य अणु जैसा ही होगा (स धर्मो व्यतिरिक्तोवा तेषामात्मैव वा तथा) । वह भिन्न रूपवाला नहीं हो सकता । परन्तु मात्राभेद से इनका विवर्त अथवा विकास हो सकता है ।

  1. अतात्विक (not fundamental) अन्यथाभाव (transformation) को विवर्त (evolution) कहते हैं ।
  2. केन्द्रशक्ति (particle with a center of mass) की अनेकप्रकार के विचित्रसंयोग (interaction with different energies) से जो व्यक्तिकरण (visual manifestation) होता है, वह विकास (transformation) है ।

आधुनिक विज्ञानमें माना जाता है कि जब दो खिलाडी एक कन्दुक (ball) को लेकर क्रीडा करते हैं, तो कन्दुक का स्थानपरिवर्तन सूत्रवायु (binding energy) जैसा काम करता है । सूत्रवायु वैदिक विज्ञानसम्मत है । परन्तु वह binding energy नहीं है, न वह string है । कन्दुक का अपना गति उसकी स्थिति के उपर निर्भर है । जब वह एक खिलाडी के पास होता है, तब उस खिलाडी बलप्रयोग कर उसे अन्य खिलाडी के पास भेज देता है । अन्य खिलाडी उसका कौशलपूर्वक अनुकरण करता है । इसी कौशल से उनका कन्दुक के साथ योग होता है (योगः कर्मसु कौशलम्) । एक खिलाडी का कन्दुक के साथ संयोग-विभाग रूपी कर्म (बल प्रयोग) का अन्य खिलाडी का कन्दुक के साथ कर्म का संयोग है । कन्दुक दोनों खिलाडीयों को बाँध कर नहीं रखता । खिलाडीयाँ कन्दुक का अन्य खिलाडीयों के साथ संयोग-वियोग के लिए कौशलपूर्वक बलप्रयोग करते हैं ।

खं सन्निवेशयेत् खेषु चेष्टनस्पर्शनेऽनिलम् ।
पक्तिदृष्ट्योः परं तेजः स्नेहेऽपो गाञ्च मूर्तिषु ॥ उपनिषदि ॥

कर्मों का अन्य कर्मों के साथ संयोग पाँच प्रकार हो सकता है ।

1. स्थानावरोध (exclusion principle) । जब दो अणुओं (fermions) का परष्पर संयोग होता है, तब वह एक काल में एक देश में एकत्र रह नहीं सकते । कारण विष्टम्भकत्व (स्थानावरोध) वस्तुमात्र का धर्म है । यदि वहाँ अणुओं के साथ कर्म का संयोग होता है, तो बन्ध (strong nuclear interaction), विभूति (weak interaction – beta decay only) तथा योग (electromagnetic interaction) नामक तीन स्वरूप सम्बन्ध होते हैं । इनको यथाक्रम अन्तर्याम सम्बन्ध (दोनों का स्वरूप नाश हो कर अपूर्व नुतन सृष्टि होना), बहिर्याम सम्बन्ध (एक का स्वरूप नाश), तथा उपयाम सम्बन्ध (दोनों का स्वरूप रहते अपूर्व नुतन सृष्टि होना) कहते हैं । यह पृथ्वीतत्त्व का गुण है ।

2. सामञ्जस्य (co-existence/superposition – bosonic principle) । यहाँ दो तत्त्व एक देश-कालमें एक अपर का अपमर्दन किये विना पृथक् सत्तामें रह सकते हैं । समग्र विश्व अग्निषोमात्मक है । अग्नि प्राण है । सोम रयि है (आदित्यो ह वै प्राणो रयिरेव चन्द्रमा । प्रश्नोपनिषत् 1-5) । अग्नि सत्य (स+ती+यम् – छान्दोग्य) है । स्थितिसिद्ध (that which can be measured) सहृदय (having a three-fold structure like the nucleus – हृ – ह्वृ॒ सं॒वर॑णे, ह्वृ॒ कौटि॑ल्ये, ह्वे॒ञ् स्प॒र्धायां॒ वा – electron shells – द – दो॒ अव॒खण्ड॑ने – and intra-nucleic field यम् – य॒मँ उपर॒मे, यमँ(म्) परि॒वेष॑णे), सशरीरी (having fixed dimensions or structure) सत्य है । सोम (रयि) भातिसिद्ध (non-physical mental constructs like time, dimension, quantity, etc.), अहृदय, अशरीरी है । इस रयि से ही सबकुछ बना है (रयिर्वा एतत्सर्वं यन्मूर्त्तं चाऽमूर्त्तं च । प्रश्नोपनिषत् 1-5) । यह जलतत्त्व का गुण है ।

3. एकभाव्य (akin to, but not color charge, which is fundamental) । रंग आरोपण (color charge) केवल सृष्टिके प्राथमिक अवस्था एवं मूल पदार्थों के क्षेत्र में प्रयुक्त होता है । अन्यत्र एकभाव्य सम्बन्ध ही रहता है । उसमें दो वस्तुओं का संसर्ग केवल यौगिक प्रक्रिया से ही सम्भव है (chemical process like oxygen and hydrogen combining through a transition state to form water or water converted to hydrogen and oxygen through electrolysis) । दो क्वार्कोंको मिलकर प्रोटोन एवं निउट्रन बनना भी इसी प्रक्रियाके अन्तर्गत आता है । यह तेजतत्त्व का गुण है ।

4. एकात्म (complementarity principle, where both exist together as a natural consequence like air with different atoms) । सामञ्जस्य और एकात्म में एक अन्तर है कि सामञ्जस्यमें दोनों का पृथक् सत्ता रहता है, जब कि एकात्म में दोनों साथ मिलकर रहते हैं । एकभाव्य और एकात्म में एक अन्तर है कि एकभाव्यमें वस्तुओं का संयोग और वियोग यौगिक प्रक्रियामें होता है, जब कि एकात्म में वस्तुओं का संयोग और वियोग प्राकृतिक प्रक्रिया से होता है । यह वायुतत्त्व का गुण है ।

5. भक्ति (translation of motion like energy moving objects in space) । यहाँ पर एक का अन्य में उपसङ्क्र´मण होता है । जैसे स्थिर आकाशमें वायु का गति अन्य वस्तुओं को उडा कर ले जाता हुआ दिखता है । विमानयात्री विमानमें स्थिर रहते हुए भी एक स्थान से अन्य स्थान पर चले जाते हैं । वायु तथा विमान का गति उनमें उपसङ्क्रमण कर जाता है । भगवानका गुण भक्तमें उपसङ्क्रमण कर जाता है । यह आकाशतत्त्व का गुण है ।

कर्म अन्य कर्मकी सृष्टि नहीं करता (कर्म कर्मसाध्यं न विद्यते) । कर्म अपने कार्य से नष्ट हो जाता है (कार्यविरोधि कर्म) । बलप्रयोग के पश्चात् कन्दुक का देशान्तरप्रापण होता है । तत्पश्चात् वह अपने संस्कार (प्रतियत्न – inertia) के बल पर गति करता है । केवल संयोग और विभाग कर्म के कार्य है (संयोगविभागाश्च कर्मणाम् – action involves motion from one position to the next and then continuing the motion by inertia) । कर्म (यहाँ बलप्रयोग) एक ही द्रव्य में (यहाँ एक खिलाडी) के पास रहता है, पूर्वदेश से विभाग तथा अपरदेश से संयोग को छोडकर उसका अन्यगुण नहीं होते तथा इस संयोग और विभाग के लिए वह अन्य कारणों की अपेक्षा नहीं रखता (एकद्रव्यम् अगुणं संयोगविभागेषु अनपेक्षकारणम् इति कर्मलक्षणम्) ।

(क्रमशः)

Shri Basudeba Mishra