कौन अवतार ग्रहण करते हैं ।
कर्म हि जगत् के प्रतिष्ठा का कारण है (न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् – गीता 3-5) । सततचलन रूपी कर्म के कारण इसे जगत् कहा जाता है (गच्छतीति जगत्) । अपेक्षाबुद्धि (इच्छित फल लाभ करने की आशा) से जो कर्म किया जाता है, उसमें प्रतियत्न रूपी संस्कार (inertia) का उदय होता है । उपेक्षाबुद्धि से […]
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