तिथिमाहात्म्य

वराहपुराण, अध्याय २३

Importance of Tithis in a Hindu calendar month.

१। प्रतिपदा

  • देवता – अग्नि
  • विशेष कर्म – उपवास वा दुग्धपान मात्र
  • विशेष फल – इस जन्म में धनवान एवं सुन्दर रूप वाला हो जाता है, शरीर त्यागने पर २६ चतुर्युगी तक स्वर्ग में सम्मानित होकर वास
  • टिप्पणी – रूप अग्नितत्त्व की तन्मात्रा है। 

२। द्वितीया

  • देवता – अश्विनीकुमार
  • विशेष कर्म – व्रत करना चाहिए, इस व्रत में पवित्र होकर पुष्पों का आहार करे। १ वर्ष में व्रत पूर्ण होता है।   
  • विशेष फल – सुन्दर रूप वाला हो जाता है, अश्विनीकुमारों के गुणों को प्राप्त करता है।
  • टिप्पणी – अश्विनीकुमारों को ब्रह्माजी ने वरदान दिया है कि रूप, कान्ति, आयुर्वेदशास्त्र का ज्ञान और सोमपान के अधिकारी होंगे।   

३। तृतीया

  • देवता – गौरी, गौरी का प्राकट्य और रुद्र से विवाह तृतीया को हुआ था।
  • विशेष कर्म – नमक खाना निषिद्ध है। जो स्त्री तृतीया को उपवास करती है उसे अचल सौभाग्य को प्राप्ति होती है। 
  • विशेष फल – दुर्भाग्यग्रस्त स्त्री या पुरुष तृतीया को लवणत्यागसहित यह अध्याय पढ़े और गौरी पर श्रद्धा रखे तो उसे सौभाग्य और धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।

४। चतुर्थी

  • देवता – श्रीगणेश, श्रीगणेश का प्राकट्य और गणाध्यक्ष केरूप में अभिषेक चतुर्थी को हुआ था।
  • विशेष कर्म – तिलों का आहारकर गणपति की आराधना करे। 
  • विशेष फल – श्रीगणेश प्रसन्न होते हैं, विघ्न दूर हो जाते हैं।
  • टिप्पणी – श्रीगणेश से पूर्व रुद्रदेव से अनेक विनायकगणों की उत्पत्ति हुई थी। उन विनायकों के अध्यक्ष श्रीगणेश हैं।   

५। पञ्चमी

  • देवता – सर्प, विशेषकर नाग,
    सर्पों और नागों का सुतल, वितल और पाताल लोकों को गमन इसी तिथि को हुआ था।  
  • विशेष कर्म – खट्टे पदार्थ का त्याग। नागों को दुग्धदान। 
  • विशेष फल – सर्प और नाग मित्र बन जाते हैं। स्थूल और सूक्ष्म दोनों। The earth is exposed to a variety of transverse/electromagnetic waves. These in turn affect all living species on earth.  
  • टिप्पणी – सर्प का अर्थ सर्पणशील तत्त्व है। Transverse waves, electromagnetic waves and the snake species.  

६। षष्ठी

  • देवता – स्कन्द (कार्तिकेय, शण्मुख, द्रप्स)  
  • विशेष कर्म – फलाहार व्रत 
  • विशेष फल – अपुत्रक को पुत्रप्राप्ति और निर्धन को धनप्राप्ति, वाञ्छित वस्तुओं की प्राप्ति। जो कार्तिकेय के स्तोत्र का सदा पाठ करता है, उसके घरमें बच्चों का सदा कल्याण होता है, वह निरोग होते हैं।
  • टिप्पणी – कार्तिकेय की पत्नी षष्ठी देवी हैं जो नवजात शिशुओं से अत्यधिक प्रेम करती हैं। इसी कारण जन्म के षष्ठ दिन षष्ठीदेवी की पूजा और आराधना की जाती है। प्रकृति के षष्ठअंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कहलाती हैं – ब्रह्मवैवर्तपुराण प्रकृति खण्ड!

७। सप्तमी

  • देवता – मार्तण्ड सूर्य या आदित्य 
  • विशेष कर्म – उपवास के साथ सूर्य आराधन 
  • विशेष फल – इच्छानुसार फलप्राप्ति
  • टिप्पणी – आदि में श्रीविष्णु से विज्ञानात्मा का प्राकट्य हुआ था जिसे आदित्य कहते हैं। उसी का नाम सूर्य (center around which our milky way galaxy rotates) है। उस सूर्य से आकाश गङ्गा गैलेक्सी उत्पन्न हुई। उसी से पुनः यह मार्तण्डसूर्य उत्पन्न हुआ है जिसका हम नित्य दर्शन करते हैं। सभी हरि की शक्ति से उत्पन्न हैं। इसी कारण यह प्रत्यक्ष सूर्य सूर्यनारायण कहलाते हैं यद्यपि वास्तविक नारायण कुछ और है, तथापि वही पुरुष अपने अंश से मार्तण्डसूर्य में विद्यमान हैं।

८। अष्टमी

  • देवता – अष्टमातृकायें  
  • विशेष कर्म – बिल्व का आहार कर मातृका पूजन
  • विशेष फल – कल्याण एवं आरोग्य 
  • टिप्पणी – ब्राह्मी (ब्रह्मा की शक्ति), कौमारी (कार्तिकेय), वैष्णवी (विष्णु), वाराही (वराह), यमी (यम), योगेश्वरी (नारायण), माहेश्वरी (महादेव), माहेन्द्री (इन्द्र)
    • शक्तियाँ – काम योगेश्वरी, क्रोध माहेश्वरी, लोभ वैष्णवी, मद ब्रह्माणी, मोह कौमारी, मात्सर्य इन्द्राणी, पैशुन्य यमदण्डधरा, असूया वाराही।  
    • अध्याय २७

  ९। नवमी

  • देवता – दुर्गा  
  • विशेष कर्म – नवमी को स्थिरचित्त द्वारा ध्यान-समाधि से दुर्गा देवी की आराधना करे। जो स्त्री या पुरुष पक्वान्न प्रसादरूप से ग्रहण करेंगे  
  • विशेष फल – उनके सभी मनोरथ सिद्ध हो जाएँगे।